“राष्ट्रीय समाज के युवाओं की प्रेरणा”

“मुश्किलों के दौर में हर कोई बहाने की चादर ओढ़ लेता है,
पर जिसने हारी हुई बाजी पलट दी वही असली शेर था राष्ट्रीय समाज का …!!
राजू पाल अमर रहें, राष्ट्रीय समाज के युवाओं की प्रेरणा,उप्र में तत्कालीन सरकार के गुंडों की अराजकतावादी व्यवस्था अन्याय शोषण के खिलाफ बुलंद आवाज बनकर कमेरों, बहन बेटियों के रक्षार्थ परम् योद्धा बन टकराने का माद्दा रखनेवाले शहीद विधायक राजू पाल की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि ।

चाहे इलाहाबाद का जघन्य राजू पाल हत्याकांड रहा हो या आज का दुर्देवि बलिया का जयप्रकाश हत्याकांड ……आज तक का इतिहास रहा है सदा उपेक्षित निर्बल राष्ट्रीय समाज पर ही हत्या ,बलात्कार जोरजुल्म सत्ता शासन प्रशासन द्वारा होता आया है वैसे भी जनता जैसी होती हैं उसको वैसे ही नेता मिलता हैं। : महादेव जानकर

यदि आज जंगलराज की सरकार हैं तो इसकी दोषी खुद हम जनता हैं। हल कभी सपा को अपना समझ सत्ता में लाया तो उन्होंने शेर विधायक राजू पाल को सरेआम गोलियों से भुनवा , रातोरात शव जलवा दिया ….आज फिर आपने भाजपा को चुना ….देखो आंखे खोलकर उन्होंने आज बागी बलिया के नौजवान शेर भाई जयप्रकाश को सरे आम शासन प्रशासन के मौजूदगी में भून दिया । बचपन से लेकर आज तक दलितों,अतिदलितो, आदिवासियों, पिछड़ों अतिपिछड़ों के इस राष्ट्रीय समाज पर लगातार हो रहे अत्याचार, लूटमार, हत्या, बलात्कार, दंगा-फ़साद जैसी घटनाओं को इतनी बार सुन चुके हैं कि अब दुःख होना बंद हो गया है। ज़हन ने मान लिया हैं कि ये सब सामान्य घटनाएँ हैं। इन सब का दोषी कोई राजनेता नहीं, बल्कि जनता खुद हैं।
इसलिए अब दमन,अत्याचार, बलात्कार, लूटमार और हत्या पर ना तो दुःख होता हैं और ना ही आश्चर्य। साथ ही अब देश की जातिवादी ताकतों के चरित्र पर आश्चर्य नहीं होता है बल्कि आश्चर्य इस बात पर होता है कि राष्ट्रीय समाज एकजुट होकर के इन क्रूर ताकतों को जड़ से उखाड़ कर अभी तक क्यों फेंक नहीं पाया है? अब आश्चर्य इस बात पर होता है कि देश के राष्ट्रीय समाज के पास बुद्ध -विवेकानंद-रैदास – कनकदास – रविदास – कबीर – फूले -शाहू – अंबेडकर -बिरसा-और अहिल्यादेवी जैसे महानायक और महानायिकाएं हैं, अपनी स्वतंत्र बुद्ध-फुले-विवेकानंद की विचारधारा है, अपनी पूँजी, अपने मुद्दों पर खड़ा अपना संगठन हैं, और अपनी राष्ट्रीय समाज की अस्मिता है,अपना झंडा है और अपना डंडा है फिर भी इस देश का राष्ट्रीय समाज अपनी अस्मिता को पोषण देने के बजाय राष्ट्रीय समाज विरोधी ताकतों को लगातार सींच क्यों रहा है। राष्ट्रीय समाज अपने अत्याचारियों को मजबूत करने में लगा हुआ है, ये आश्चर्य हैं।
राष्ट्रीय समाज की तमाम सामाजिक राजनीतिक आर्थिक और शैक्षणिक बीमारियों से इस अवगत कराते हुए उनके लिए अवसर के सारे दरवाजे खोलने वाली उसकी चाबी संविधान ने राष्ट्रीय समाज के हाथों में दे दी है, लेकिन राष्ट्रीय समाज इस चाबी का इस्तेमाल कर अपने लिए अवसर के दरवाजे खोलने के बजाय चमचागिरी में लगा हुआ हैं। राष्ट्र नायक महादेव जानकर जी जिस कांग्रेस व भाजपा को मौसेरा भाई व सपा बसपा को परिवरवादियो और पूंजीवादियों का घरोंदा कहते हैं पढ़े-लिखे लोग उसकी चमचागिरी कर रहे हैं, ये सबसे बड़ा अचम्भा हैं। राष्ट्रीय समाज के पास आज राष्ट्र नायक महादेव जी के रूप में एक सशक्त और उम्दा नेतृत्व है,और राष्ट्रीय समाज पार्टी जैसा एक राजनैतिक पार्टी है, इसके बावजूद राष्ट्रीय समाज पिले झंडे के नीचे एकत्रित होकर अपनी हुकूमत स्थापित करने में असफल हो रहा है, ये हैं आश्चर्य का विषय। राष्ट्रीय समाज की नई-नवेली पार्टियां और संगठन अपने शोषक से लड़ने के बजाय राष्ट्रीय समाज पार्टी से ही लड़ रहे हैं, ये हैं आश्चर्य की बात।
इसलिए किसी को भी मौजूदा आतंकराज पर ना तो दुखी होना चाहिए और ना ही आश्चर्य करना चाहिए। लोगों ने जैसी सरकार चुनी हैं उनके साथ वैसा ही बर्ताव हो रहा हैं। यदि चाहिए, ऐसी सरकार चुनिए जिसका शासन-प्रशासन संविधान सम्मत व बेहतरीन रहा हो। हमारे विचार से किसी भी बात पर दुख प्रकट करने और शोक प्रकट करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। यदि राष्ट्रीय समाज के लोग न्याय चाहते हैं, यदि लोग चुश्त-दुरुश्त शासन चाहते हैं, मूलभूत सुविधाएँ चाहते हो, तो आप एक ऐसे पार्टी को सत्ता दीजिए जो देश के सबसे निचले उपेक्षित तबके की बात करता हो, जो संविधान सम्मत शासन दे, जो देश के राष्ट्रीय समाज का बुद्ध-फुले-विवेकानंद की वैचारिकी पर आधारित अपना राजनैतिक दल हो।
फिलहाल, राष्ट्रीय समाज जितनी जल्दी अपनी अस्मिता को स्थापित कर शासक जमात में शुमार हो जाएगा उतनी ही जल्दी उसको अत्याचारों से मुक्ति मिल जाएगी। यहां पर राजनीति के अलावा राष्ट्रीय समाज को चाहिए कि वह महात्मा फुले द्वारा बताए गए रास्ते पर चलते हुए अपनी जीवनशैली में बड़ा बदलाव करें। मतलब कि अपनी जीवन शैली से सारे ब्राह्म
क्रूर पाखंडवाद के पोषक-रिवाजों, तीज त्योहारों, पाखंडी ओ दिखावटी रहन-सहन आदि सब को दरकिनार करते हुए अपनी स्वतंत्र सामाजिक अस्मिता को स्थापित कर अपने संस्कृति का पोषित करें, राजनीति के साथ-साथ अपनी स्वतंत्र सामाजिक – सांस्कृतिक और आर्थिक अस्मिता को स्थापित करे। इसी में इस देश की भलाई है।राष्ट्रीय समाज की भलाई है ।बाकी आपकी सोच और समझ।।