“मुश्किलों के दौर में हर कोई बहाने की चादर ओढ़ लेता है,पर जिसने हारी हुई बाजी पलट दी वही असली था शेर …!!
राजू पाल अमर रहें। राष्ट्रीय समाज के युवाओं की प्रेरणा,आतताइयों, समाजद्रोहियो, तत्कालीन सत्तारूढ़ गुंडों की अराजकतावादी व्यवस्था अन्याय शोषण के खिलाफ बुलंद आवाज बनकर कमेरों, बहन बेटियों के रक्षार्थ परमयोद्धा बन टकराने का माद्दा रखनेवाले शहीद विधायक राजू पाल की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि ।

शहीदों की चिंताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

राष्ट्रीय समाज की एके दुःख दत्रास दीजो भी आया मार गया ……

जब देश गणतंत्र दिवस की खुशी में मशगूल हो रहा था तभी राष्ट्रीय समाज के नायक को सपा के तत्कालीन इलाहाबाद के सांसद द्वारा दफनाने का घिनोना खेल

2005 में एक ओर भारत में 25 जनवरी को अगले दिन होने वाले गणतंत्र दिवस की तैयारियों चल रहीं थी तो इलाहाबाद की सडकों पर खूनी खेल हो रहा था। राष्ट्रीय समाज के शेर विधायक राजू पाल पर ताबडतोड गोलियों की बौछार हो रही थी। राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल के मौत की बिसात 2004 में शहर पश्चिमी से विधायक चुने जाने के बाद ही बिछाने लगी थी। इसकी वजह यह थी कि शहर पश्चिमी से समाजवादी पार्टी के अतीक अहमद लगातार पाँच बार विधायक बन चुके थे। राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल समर्थकों के अनुसार समाजवादी पार्टी व बाहुबली अतीक अपनी दबंगई के दम पर यह जीतते रहे थे। 2004 में समाजवादी पार्टी (सपा) ने फूलपुर से सांसदी का टिकट दिया, जहां अतीक को सफाई दबंगयीं से जीत हांसिल हुई। सासंद चुने जाने के बाद शहर पश्चिमी की विधायकी सीट खाली हो गई थी। जिस पर तत्कालिन सपा सांसद अतीक अहमद अपने छोटे भाई अशरफ को लडाना चाहते थे। वहीं बसपा से टिकट मिलने के बाद राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल भी शहर पश्चिमी से विधानसभा चुनाव के मैदान में उतर गए। हालंाकि अतीक, छोटे भाई अशरफ को शहर पश्चिमी का किला काफी मजबूत लग रहा था। वहीं वोटिंग के बाद जब नतीजे आए तो राष्ट्रीय समाज के राजू पाल ने अशरफ को 5000 वोटों से हरा कर अतीक के किला 25 साल बाद ध्वस्त कर दिया था। अपराध की दुनिया में अपना सिक्का जमा चुके अतीक अहमद तथा समाजवादी के पाले गुर्गो को यह जीत बरदास्त नहीं हुई। यह तत्कालीन सरकार ने अपनी हार मानी इलाहाबाद ही नही लखनऊ की कुर्शी हिलने लगी ।
ऐसे में यह जीत राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल की हत्या की वजह मानी गई। राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल की हत्या किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था। उनके करीबि बताते है 25 जनवरी को राजू जी गांव के ही एक छात्र की हत्या के संबंध में एसआरएन हाॅस्पिटल स्थित पोस्टमार्टम हाउस गए थे। दोपहर करीब तीन बजे वहां से घर वापस आ रहे थे। वो क्वालिस लेकर खुद चला रहे थे। उनके पीछे काफिले में एक अन्य गाडी स्कार्पियो थी। दोनों गाडियों में एक-एक सुरक्षा हेतू गनर थे। वहां से कुछ दूर चले ही थे कि नेहरू पार्क मोड के पास पहले से घात लगा कर बैठे सफाई गुंडे गाडी के पीछे से गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इस बीच एक चार पहिया वाहन राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल की गाडी के सामने ला खडी की गई। इसके बाद शूटरों ने राइफल, बंदूक सहित अन्य तरह के असलहों से लैश राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल की गाडी पर गालियों की बौछार शुरू कर दी। इन गोलियों की बौछार से गाडी में जगह-जगह सुराख हो गए। इस हमले में राष्ट्रीय समाज का शेर राजू पाल को कई गोलियां लग चुकी थी। गोलियों की आवाज से चारो तरफ अफरा तफरी बच गई थी। कुछ देर बात राजू समर्थक घायल अवस्था में टैम्पों में बैठा कर जीवन ज्योति हाॅस्पिटल ले जाने लगे। ऐसे में दूर दराज से घटना क्रम पर नजर रखने वाले शूटरों को लगा कि अभी राजू पाल राष्ट्रीय समाज का शेर जिंदा है। इसके बाद शूटर फिर से चलती टैंपों को दाए-बांए व पीछे से घेर कर असलहों से फायरिंग की गई। फायरिंग घटना स्टाल से अस्पताल तक खूब की गई दूमनगंज थाना कैंट थाना सिविल लाइन्स थाना रास्ते में पड़े पर दबाव सरकारी रसूक तत्कालीन सरकार का बेचारी पुलिश भी मूकदर्शक बनी रही इस फायरिंग से सुलेम सराय से जीवन ज्योति हाॅस्पिटल तक करीब चार से पांच किमी तक हुई। इस फायरिंग से पूरी सडक पर अफरा तफरी मच गई थी। लोग खुद को गोलियों की बौछार से बचाने के लिए गिरते-पडते भागते नजर आए। सफा तथा अतीक के शूटरों द्वारा किए गए हमले के दौरान उन्हें 19 गोलियां लगी थीं। इस दौरान उनके साथ काफिले में संदीप व देवीलाल की भी जान चली गई थी।
विधायक के हत्या की खबर इलाहाबाद सहित विभिन्न प्रदेशों में आग की तरह फैल गई। जब पुलिस पुलिस वाले राष्ट्रीय समाज के नायक राजू पाल के शव को पोस्टमार्टम के लिए स्वरूपरानी हाॅस्पिटल लेकर पहुंचे। यहां से राष्ट्रीय समाज के युवाओं की फौज अपने नायक राजू पाल के शव को लेकर भाग खडे हुए। चक्का जाम तक कर दिया। तत्कालीन सपा सरकार के मुखिया मुलायम सिंह के दबाव में प्रशासन पुलिस वालों ने बडी मुश्किल से उनसे शव हासिल कर रात में पोस्टमार्टम करा कर तत्काल रातोरात दारागंज गंज घाट पर शव का दबाव में दाह संस्कार किया गया। दाह संस्कार के दौरान घर का कोई सदस्य भी मौके पर नहीं था। यहां तक कि बूढ़ी माँ को शहिद का शव देने और दिखाने से आतताईयों की सरकार ने मना कर दिया ।
आज आपकी पुण्यतिथि पर आपको कोटिश नमन ।।।

-कुमार सुशिल –

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