क्रांतिवीर संगोल्ली रायन्ना

कित्तूर की रानी चेन्नमा के क्रांतिवीर सेनापति का जन्म 15 अगस्त 1798 को भेड़पालक परिवार में हुआ था। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रथम सशस्त्र क्रांति के आप नायक रहे हैं इसको दबाने के लिए ब्रिटिश ने 26 जनवरी 1831 को क्रान्तिवीर संगोल्ली रायन्ना को फांसी देदी, पुण्यतिथि पर कोटिश नमन।।
राष्ट्रीय समाज के गणतंत्र का निर्माण

हम राष्ट्रीय समाज भारत के निवासी, करते अपनी मनमानी।

दुनिया की कोई फिक्र नहीं, संविधान है करता पहरेदारी।।

है इतिहास इसका बहुत पुराना, संघर्षों का था वो जमाना;

न थी कुछ करने की आजादी, चारों तरफ हो रही थी बस देश की बर्बादी,

एक तरफ विदेशी हमलों की मार,

दूसरी तरफ दे रहे थे आज की तरह कुछ अपने ही अपनो को घात,

पर आजादी के परवानों ने हार नहीं मानी थी,

विदेशियों से देश को आजाद कराने की जिद्द ठानी थी,

एक के एक बाद किये विदेशी शासकों पर घात,

छोड़ दी अपनी जान की परवाह, बस आजाद होने की थी आखिरी आस।

1831में सांगोली रैयान्ना को फाँसी क्रान्ति संघर्ष की पहली कहानी थी,

जो किट्टूर नंदगढ़ से उठी फिर मेरठ, कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली और अवध में लगी चिंगारी थी,

जिसकी बेदी पर चढ़ा चरवाहा संगोली रैयान्ना ओ किट्टूर की चेन्नमा रानी आजादी की दिवानी थी,

देश भक्ति के रंग में रंगा वो एक मस्ताना था,

जिसने देश हित के लिये स्वंय राष्ट्रीय समाज को ले बलिदान करने की ठानी था,

उसके साहस और संगठन के नेतृत्व ने अंग्रेजों की नींद उड़ायी थी,

फाशी दिया उसे षडयंत्र रचकर, कूटनीति का भंयकर जाल बुनकर,

शाहिद हुआ वो पर फिर भी अमर हो गया,

अपने बलिदान के बाद भी अंग्रेजों में खौफ छोड़ गया,

उसकी शहादत ने हजारों देशवासियों को नींद से उठाया था,

अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक नयी सेना के निर्माण को बढ़ाया था,

फिर तो शुरु हो गया अंग्रेजी शासन के खिलाफ संघर्ष का सिलसिला,

एक के बाद एक बनता गया वीरों का काफिला,

वो वीर मौत के खौफ से न भय खाते थे,

अंग्रेजों को सीधे मैदान में धूल चटाते थे,

ईट का जवाब पत्थर से देना उनको आता था,

अंग्रेजों के बुने हुये जाल में उन्हीं को फसाना बखूबी आता था,

खोल दिया अंग्रेजों से संघर्ष का दो तरफा मोर्चा,

सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग को गाँधी ने अपनाया था,

दूसरी तरफ क्रान्तिकारियों ने भी अपना मोर्चा लगाया था,

बिस्मिल, अशफाक, आजाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु शीतला जैसे,

क्रान्तिकारियों से देशवासियों का परिचय कराया था,

अपना सर्वस्व इन्होंने देश पर लुटाया था,

तब जाकर 1947 में हमने आजादी को पाया था,

एक बहुत बड़ी कीमत चुकायी है राष्ट्रीय समाज ने इस आजादी की खातिर,

न जाने कितने वीरों ने जान गवाई थी देश प्रेम की खातिर,

निभा गये वो अपना फर्ज देकर अपनी जाने,

निभाये राष्ट्रीय समाज भी अपना अब फर्ज आओ आजादी को पहचाने,

देश प्रेम में डूबे वो, न हिन्दू, न मुस्लिम थे,

वो भारत के वासी राष्ट्रीय समाज के बेटे थे,

उन्हीं की तरह देश की शरहद पर हरेक सैनिक अपना फर्ज निभाता है,

कर्तव्य के रास्ते पर खुद को शहीद कर जाता है,

आओ हम भी देश के सभ्य नागरिक बने,

हिन्दू, मुस्लिम, सब छोड़कर,राष्ट्रीय समाज मे मिलजुलकर आगे बढ़े,

जातिवाद, क्षेत्रवाद, आतंकवाद, ये देश में फैली बुराई है,

जिन्हें किसी और ने नहीं देश के बेशहुरपुरीओ ने फैलाई है

अपनी कमियों को छिपाने को देश समाज को भ्रमाया है,

जातिवाद प्रांतवाद के चक्र में हम सब को उलझाया है,

अभी समय है इस भ्रम को तोड़ जाने का,

सबकुछ छोड़ राष्ट्रीय बन देश विकास को करने का,

यदि फसे रहे जातिवाद में, तो पिछड़कर रह जायेंगे संसार में,

अभी समय है उठ जाओं वरना पछताते रह जाओगें,

समय निकल जाने पर हाथ मलते रह जाओगे,

भेदभाव को पीछे छोड़ सब राष्ट्रीय समाज बन जाये,

इस गणतंत्र दिवस पर मिलजुलकर तिरंगा लहराये।।