आजादी के बाद पिछले 70 वर्षों में भारतीय राजनीति को विविध पड़ावों से गुजरना पड़ा है। इन पड़ावों के अलग-अलग पहलू और अलग-अलग नायक रहे हैं। इनमें अधिकांश नायकों की संख्या उनकी है जो या तो स्वतन्त्रता आन्दोलन की पैदाइश थे या स्वयं को स्वतन्त्रता आन्दोलन की विरासत से जोड़ते हैं।
शुरुआती 1950 से 90 के दशक तक, भारतीय राजनीति के सितारे पं. जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, इन्दिरा गांधी,राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, जगजीवन राम सरीखे नेता स्वतन्त्रता आन्दोलन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े थे। 90 के दशक के बाद में जिन नेताओं ने भारतीय राजनीति में कदम रखा, उनमें अधिकांश या तो कांग्रेस की राजनीतिक विरासत से थे या कांग्रेस विरोधी समाजवादी गुट राममनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण या मान्यवर कांशीराम के आन्दोलनों की पैदाइश थे। राजीव गांधी, सोनिया गांधी, वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर,चौधरी देवी लाल, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान ,मायावती जैसे नेताओं ने इन्हीं की विरासतों पर अपनी राजनीति का महल खड़ा किया।
इन सबसे अलग महादेव ऐसे नेता हुए जिन्होंने इन दोनों प्रचलित विरासतों से अलग एक नए तरह की राजनीतिक पारी शुरू की। ऐसा नहीं है कि महादेव जिस राजनीतिक धारा के प्रतिनिधि हैं, उसकी कोई अपनी विरासत नहीं थी। उसकी विरासत इन दोनों प्रचलित धाराओं से भी प्राचीन थी, लेकिन महादेव के उद्भव के समय वह लुप्तप्राय थी। इस धारा को महादेव ने खोजा तथा इसके मार्ग को गहरा और चौड़ा करने के इरादे से ताल्लिन है । यह धारा इतनी ताकतवर है कि मार्ग पाते ही सुनामी में तब्दील हो रही है । फलतः न केवल‘राजनीति’ में उथल-पुथल मची है , बल्कि साहित्यिक, सांस्कृतिक,सामाजिक आदि क्षेत्रों में भी भूचाल आ गया है और जिससे संपूर्ण भारत की सामाजिक-राजनीतिक तस्वीर शने शने बदल रही।
राजनीति की नयी धारा विकसित करने वाले महादेव का जन्म महाराष्ट्र प्रान्त के जिला सातारा में दुर्गम सूखाग्रस्त माड़ में गाय भेड़ बकरी चराने वाले परिवार में हुआ। इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के ही प्राइमरी स्कूल से ली तथा उच्च माध्यमिक तक की शिक्षा सातारा और इंजीनयरिंग की शिक्षा पूना से प्राप्त की। गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर बनने के बाद जब आपके साथी नौकरी के लिए विदेश जाने लगे तो आप सब से अलग नौकरी लेने की बजाय देनेवाला बनने की ठान चल पड़े।इसी दौरान ही उन्हें नौकरशाही और प्रश्थापितो की सोच और उसके विरुद्ध लड़ने की की उत्कट इच्छा का अनुभव हुआ। अपने बचपन की यायावर प्रवृति तथा गोर गरीब मज़लूमो की वेदना आपको कचोटने लगी आपने महात्मा फुले के समतामूलक समाजवादी दृष्टिकोण तथा लोकमाता अहिल्या के राज्य व्यवस्था का गहन अध्ययन किया और पाया कि महात्मा फुले के फुलेवाद और अहिल्या के अहिल्यावाद के विचारों से दूर जाना ही इस सब दुखो का कारण है इसका आपके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा और आपके जीवन का उद्देश्य ही बदल गया।
स्वामी विवेकानंद, महात्मा जोती राव फूले,छत्रपति शाहूजी महाराज,शिवाजी महाराज, पेरियार रामास्वामी नायकर ,लोकमाता अहिल्या आदि के साहित्य और संघर्षों का भी गहन अध्ययन किया। इन अध्ययनों और स्वयं संघर्ष में सम्मिलित होने के अनुभव से महादेव का व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा का निर्माण हुआ, जिसकी जड़ें तो भूत काल में है लेकिन उससे भविष्य का भी निर्माण होने वाला है।
महादेव का जीवन त्याग और निष्ठा का उत्कृष्ट उदाहरण है। उन्होंने ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ को अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया तथा इसकी प्राप्ति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उनकी माँ अपनी यादों के आधार पर बताती हैं कि पूना जाने के बाद उनका बेटा काफी बदल गया था, कभी घर पर आता तो गुमसुम बैठा रहता और खेतों में जाकर किताबें पढ़ता रहता था। अन्तिम बार जब पूना गया तो काफी समय तक खत नहीं आने पर वे परेशान हो उठीं। भाई को हाल पता करने भेजा गया। भाई ने जब महादेव से घर आने को कहा तो महादेव ने जवाब दिया- ‘‘घर वालों को बता देना अब मैं घर कभी नहीं आऊँगा। मुझे अपने दबे-कुचले राष्ट्रिय समाज के लोगों के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़नी है।’’ महादेव ने 1994 में शिरोड़े की विठोबा के यात्रा में लाखों लोगो के स्पष्ट किया था कि मैं कभी शादी नहीं करूँगा, मैं कभी घर नहीं आऊँगा, मैं अपने लिए कभी कोई सम्पत्ति नहीं बनाऊँगा, सगे संबंधियों से कोई रिश्ता नहीं रखूँगा ,यही समाज ..राष्ट्रिय समाज ही मेंरा परिवार है । आजतक अपने इस प्रतिज्ञा पर आप कायम है यहाँतक की अपने पिताजी के निधन पर भी आप घर की चौखट नहीं लांघे जो आपके लक्ष्य के प्रति गंभीरता को दर्शाता है ।
महादेव ने एक ऐसा मार्ग चुना था जिसके नेता भी वे स्वयं थे तथा कार्यकर्ता भी स्वयं। लेकिन ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’ का लक्ष्य किसी एक व्यक्ति के त्याग और बलिदान से पूरा होने वाला नहीं है, इसलिए उन्होंने एक विस्तृत योजना तैयार की। इस योजना की पहली कड़ी है विचारधारा का चुनाव तथा उसका निरन्तर परिष्कार। उन्होंने स्वामी विवेका नन्द ,महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी नायकर, शिवाजी महाराज ,छत्रपति शाहूजी लोकमाता अहिल्या देवी और डॉ. अम्बेडकर की विचारधारा का गहन अध्ययन किया ही था । इसके साथ उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों का भी गम्भीर अध्ययन किया। अन्ततः उन्होंने राष्ट्रीयता की थीसिस विकसित की। उन्होंने कहा कि लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली होने के बावजूद भारत में अल्पजन और घोर जातिवादी लोग शासन सत्ता पर काबिज हैं। भारत का राष्ट्रीय समाज गुलामों की तरह जीवन निर्वाह कर रहा हैं।
महादेव एक इंजीनियर के विचार में आर्थिक रूप से गरीब ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य अति दलित,अति पिछड़ा और अल्पसंख्यक समुदाय इस देश का राष्ट्रीय समाज है उनके अनुसार जब तक राष्ट्रिय समाज के हाथ में राजनीतिक सत्ता की चाबी नहीं आ जाती, तब तक किसी भी समस्या का समाधान सम्भव नहीं है।
महादेव राजसत्ता को ‘मास्टर चाबी’ कहते है जिससे सभी क्षेत्र के बन्द दरवाजे खोले जा सकते हैं। वे राजसत्ता को साध्य नहीं साधन मानते हैं, जिससे ‘सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति’के साध्य को प्राप्त किया जा सके। महादेव के दर्शन की यह भाषा साधारण जनता को समझाने के लिए है। वे थ्री डी यानि डिवोशन डेडिकेशन और डेटर्मिनेसन और थ्री एम यानि मीडिया मनी और माफिया की बात करते है जो मात्र साधन है वास्तव में वे लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली में ‘राज्य’ की निर्णायक भूमिका तथा इसे यंत्र की तरह इस्तेमाल करने के सिद्धान्त से सहमत थे। वे‘राज्य’ पर राष्ट्रिय समाज का आधिपत्य स्थापित करना चाहते है। अपनी योजना की दूसरी कड़ी में वे त्यागी कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहे है । इसके लिए उन्होंने राष्ट्रिय समुदाय के उस हिस्से को उन्होंने जागरूक करने का लक्ष्य बनाया है जो महात्मा फुले छत्रपति साहू महाराज के आन्दोलन का फल चख रहा है अर्थात् पढ़ लिखकर सरकारी नौकरी कर रहा है वे ऐसे बौद्धिक प्रबुद्ध वर्ग को एक ऐसा कार्यकर्ता समूह बनाना चाहते है जिसके पास धन के साथ-साथ समझदारी भी हो। तब विचारधारा, कार्यकर्ता और नेता जैसे आवश्यक स्तम्भों के साथ महादेव राजसत्ता की प्राप्ति के संघर्ष में विजयी होने चाहते है ।
संघर्ष के लिए आवश्यक अंगों को तैयार करने के साथ साथ आपने संगठन का निर्माण कार्य प्रारम्भ किया है। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण तथा संगठन निर्माण का कार्य साथ-साथ चला है आपने यशवंत सेना नामक संघठन के सर सेनापति के रूप में अपनी दृढ़ इच्छासक्ति को सबके समक्ष रहा वैसे यह संगठन राजनैतिक दल तो नहीं था, लेकिन इसकी गतिविधियाँ राजनीतिक दल जैसी ही आपने संचालित किया । इसी संगठन की ओर से धरना प्रदर्शन आदि कार्य आप कार्ये रहे । इसी के बैनर तले अनगिनत विशाल रैलियाँ आयोजित की गयी थीं। 31 मई 2003 को लोकमाता अहिल्यादेवी के जयंती के अवसर पर चौण्डी में आपने राष्ट्रिय समाज पार्टी की स्थापना की। उद्देश्य स्पष्ट था- राजसत्ता की चाबी पर कब्जा करना।
राष्ट्रिय समाज पार्टी के साथ ही महादेव ने विशुद्ध रूप से राजनीति में कदम रखा। 2009 में राष्ट्रीय समाज पक्ष के चुनाव चिन्ह पर आपने अपना विधायक चुन कर विधानसभा में भेजा यह कोई साधारण बात नहीं थी।यह राष्ट्रिय समाज के लिए एक उम्मीद का दीया साबित हुआ इसका प्रभाव भारत की राजनीती पर आज भी परिलक्षित होता है यह चुनाव राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 2009 के आम चुनाव में आप माढा लोकसभा का चुनाव अपनी पार्टी राष्ट्रिय समाज पार्टी से लडे यहाँ महादेव ने राष्ट्रवादी व् कांग्रेस और संयुक्त विपक्ष के इस संघर्ष में अपना स्वतन्त्र दावा पेश किया ताकि वे स्वयं को तीसरी धारा के रूप में स्थापित कर सकें। इस चुनाव को पूरे देश में बेहद प्रचार मिला। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने भी इस पर ध्यान दिया। शरद पवार चुनाव जीते पर महादेव के लिए यह एक नैतिक विजय थी। इसी चुनाव के पश्चात महादेव संसदीय राजनीति में एक स्थायी तत्व के रूप में जम गये। कंधे पर पर लगा हुआ महादेव के निशान वाला पिला झण्डा उनके और उनके आन्दोलन का प्रतीक बन गया।
महादेव ने चुनावों में दमदारी से हस्तक्षेप करने के साथ-साथ निरन्तर आन्दोलनों के माध्यम से भी अपनी विचारधारा का प्रचार जारी रखा। महादेव ने पांच सूत्रीय सामाजिक रूपान्तरण आन्दोलन चलाया। ये पांच सूत्र थे- आत्मसम्मान के लिए संघर्ष, मुक्ति के लिए संघर्ष,समता के लिए संघर्ष, जाति उन्मूलन के लिए संघर्ष और भाईचारा बनाने के लिए संघर्ष। इसके लिए महादेव ने देश के संसद पर पाल बघेल गड़ेरिया धनगर रबारी कुरुबा गद्दी बकरवाल अधिकार मोर्चा , संगोळी रायय्यन्ना जयंती, आई ए एस आई पी एस ,संसद विधायक शोध यात्रा इत्यादि अनेको यात्रायें निकालीं।
आर्थिक नीति के नए दौर में महादेव ने एक परिवक्व राजनीतिक नेता के तौर पर खुद को प्रस्तुत किया 2014 में वे प्रस्थापित शरद पवार की बेटी के खिलाफ बारामती उनके गढ़ में ही उन्हें ललकार दिया मत गड़ना के दिन पवार साहब आधे दिन पसीना पोछते रहे ,कई लाखो से जितने वाले कई लाख पीछे कई दौर तक चलते रहे , आखिर कुछ राउंड में कुछ हज़ार से भले पवार जित गए पर यह चुनाव कई दृष्टियों से मील का पत्थर साबित हुआ। 2017 या 2019 में उत्तरभारत का लोकसभा चुनाव में गांव गांव घूमकर पगडंडियों पर अपने आप को जलाना हो …ऐवज में हज़ारो कार्यकर्ता गढ़ने का काम आपने किया और इसी के गर्भ में राष्ट्रिय समाज का माधव हो या अतिदलित-अतिपिछड़ा और गरीब सवर्ण समाज के गठजोड़ का बीज है जिसका प्रभाव भविष्य की भारतीय राजनीति पर पड़ना है। उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि राष्ट्रिय समाज अपनी ताकत को पहचान गया है। मगर महादेव का यह कार्य कोई आसान नहीं है। एक तरफ उन्होंने बड़े ही सूझ-बूझ तथा वैज्ञानिक दृष्टि से अपने आन्दोलन को नियोजित किया है, तो दूसरी तरफ इसके लिए उन्होंने अपने व्यक्तिगत आवश्यकताओं और सेहत तक की परवाह नहीं की। मगर आज वे क्रांति सूर्य की एक रौशनी के रूप में इस राष्ट्रिय समाज को न केवल राजसत्ता प्राप्त करने का सपना दिखाये, बल्कि राजसत्ता पर कब्जा करने का फार्मूला भी दिया है आज आओ हम सब उसी महात्मा फुले के पहले सत्य शोधन फिर समाज प्रबोधन और अंत में राष्ट्र संघटन के रूप में राष्ट्रीय समाज के राष्ट्रीय समाज पार्टी को स्थापित कर उसे उसका वैभवशाली अतीत लौटा दे ।